वंदना टेटे के काव्य में तिलका मांझी का संघर्ष
-Dr. Dilip Girhe
बाबा तिलक
तुम पर कोड़ों की बरसात हुई
तुम घोड़े में बांधकर घसीटे गए
फिर भी तुम्हें मारा नहीं जा सका
तुम भागलपुर में सरेआम
फांसी पर लटका दिए गए
फिर भी डरते रहे जमींदार और अंग्रेज
तुम्हारी तिलका (गुस्सैल) आंखों से
और मर कर भी तुम मारे नहीं जा सके
सिंगारसी पहाड़ पर तुम जनमे
पहाड़िया लोगों की तुमने फौज बनाई
तुम्हारी तीर से मारा गया क्लीवलैंड
तुमने खदेड़ा दुश्मनों को रामगढ़ तक
आज सिर्फ तुम्हें तुम्हारे पहाड़िया वंशज ही नहीं
संताल भी तुम्हें अपना मानते हैं
तुम जो अंग्रेजों के लिए 'जौराह' डाकू थे
तुम जो 1300 लड़ाकों के मांझी (अगुआ) थे
तुम जो जबरा पहाड़िया थे
और तुम्हीं, जो बाबा तिलका मांझी हो
हम सब आदिवासी जनगण तुम्हें याद करते हैं
-वंदना टेटे
काव्य संवेदना:
कवयित्री वंदना टेटे अपनी कविता 'बाबा तिलक' में तिलका मांझी की वीरता एवं उनके संघर्ष का वर्णन करती है। तिलका मांझी का आदिवासियों की शौर्यगाथाओं में एक आदिवासी नेता के रूप में जाने जाते हैं। जिन्होंने अंग्रेजी सत्ता के ख़िलाफ़ संघर्ष की लड़ाई लड़ी थी। कवयित्री कविता संदर्भ देती है कि तिलका माझी को कोड़ों की बरसात और घोड़ों को बांधकर घसीटकर लाने जैसे घटनाएं उनके साथ कि गई। प्रस्तुत कविता में वंदना टेटे ने आदिवासी जननायक तिलका मांझी का संघर्ष एवं वीरता को रेखांकित किया है। उनको रामगढ़ तक खदेड़ा दिया गया। तिलका को अंग्रेजों ने भले ही डाकू घोषित किया था। वे उनके विरुद्ध जौराह डाकू के रूप में काम करते थे। आदिवासी समुदाय के लिए एक नायक के रूप में उन्होंने कार्य किया है। उनकी विरासत औऱ कार्य को आज भी याद किया जाता हैं।
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