गुरुवार, 1 मई 2025

चाय की सिसकियाँ चाय बागानों की आदिवासी युवा कवयित्रियों की लेखनी से निकली कविता संग्रह सम्पादन वाल्टर भेंगरा 'तरुण'



चाय की सिसकियाँ

चाय बागानों की आदिवासी युवा कवयित्रियों की लेखनी से निकली

कविता संग्रह

सम्पादन

वाल्टर भेंगरा 'तरुण'


आदिवासी कविता क्या है जानिए विविध कवियों के अपने मतप्रवाह:

एमलेन बोदरा:

उत्तर बंगाल के चाय श्रमिक दोहरी विस्थापन की मार झेल रहे हैं। वे गंभीर आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समस्याओं और शोषण का शिकार बन रहे हैं लेकिन उनकी समस्याओं पर किसी का ध्यान नहीं जाता है जबकि अधिकांश लोग अपने दिन की शुरूआत चाय से करते हैं। इन सारी चीजों को देखकर मन उदास हो जाता है, इसीलिए मैंने अपने मन के विषाद, कसमसाते सवालों और कड़वे अनुभवों को टूटे-शब्दों में अभिव्यक्त करने की कोशिश की है।

प्रफुल्ला मिंज:

मेरी अधिकांश कविताएं पश्चिम बंगाल के तराई एवं डुवार्स क्षेत्र में कार्यरत आदिवासी महिलाओं एवं पुरुषों की व्यथा को दर्शाती हैं। बंधुआ मजदूर का जीवन व्यतीत करते हुए हमारे समुदाय के सभी माता-पिता आज तक अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मेरी ये सभी कविताएं चाय बागानों में रहने वाले माता-पिता एवं भाई-बहनों को समर्पित हैं।

मरीना एक्का:

मेरी ये कविताएं मेरे खुद की ही अभिव्यक्ति मात्र नहीं, बल्कि उन तमाम चाय मजदूरों की पीड़ा का स्वर हैं जिन्हें वे स्वयं अभिव्यक्त नहीं कर पाते।

शिखा मिंज:

कविता एक बहुत ही अच्छा माध्यम है जिसके द्वारा हम कम शब्दों में स्वयं को अंकित कर सकते हैं। साथ ही अपने भाव, विचारों को प्रकट कर सकते हैं।

क्रिस्टीना तोपनो:

अपनी कविता के माध्यम से चाय बागान के आदिवासी मजदूरों की पीड़ा को, समस्याओं को और शोषण को अभिव्यक्ति प्रदान करना है। साथ ही, चाय बागान के आदिवासी बच्चों पर होने वाले अन्याय और भेद-भाव को व्यक्त करना है।

ज्योत्स्ना मिंज:

मैंने अपनी आदिवासी कविताओं से चाय बागानों में चल रही कठिनाइयों तथा विडंबनाओं को दर्शाने की कोशिश की है। साथ ही, अन्य कविताओं से समाज में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया है।

जेरेलडिना मुचवार:

मेरी कविता बहुत ही सहज और सरल है। मैंने अपनी कविताओं में अपने आस-पास की घटनाओं को लिया है। चाय मजदूरों के जीवन की अदम्य जीजिविषा को अभिव्यक्त करने का प्रयास है। शुरूआत से ही बागान के लोगों को अनेक संघर्षों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा राजनीति के क्षेत्र में देखें तो बागान के मजदूर मात्र बोट बैंक बन कर रह गए है। इन सभी परिस्थितियों को मैंने देखा और कविता के माध्यम से कहने की कोशिश की है।

जानकारी स्त्रोत: चाय की सिसकियाँ (काव्य संग्रह से)


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