शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

अपने कोठरी के लिए समर्पित जीवन:वंदना टेटे!! Apane Kothari ke liye samrpit Jivan:Vandana Tete!!


अपने कोठरी के लिए समर्पित जीवन:वंदना टेटे

-Dr. Dilip Girhe


इस कोठरी के लिए

मैंने तय कर लिया है 

लौट जाऊंगी 

अपने दुनिया में 

क्योंकि बहुत मुश्किल है 

इस अंजानी असहज 

दुनिया में अकेले रहना


कई एहसासों के 

रंग से 

रंगी थी मैंने ये कोठरी 

महीने भर में 

इसकी सूरत कैसी 

बदली-बदली है 

इससे पहले कि ये 

और बदल जाएं 

मैं लौट जाना चाहती हूं 

अपनी दुनिया अपने गांव में।


तुम्हारे घुटनों में दर्द के बावजूद

शहर की सड़कें 

नापते हुए

अस्पताल के कॉरिडोर में 

भागते हुए

किसी रेस्तरां की भीड़ में 

अकेले पड़े 

टेबल में खाते हुए 

इस कोठरी के लिए 

कई रौशनियां जुटाई थी मैंने।


कोठरी में उतरता 

ये अंधेरा 

इतने आहिस्ते से उतरा 

कि 

भौंचक हैं रौशनियां 

अपनी बेदखली 

और तुम्हारी चुप्पी से।

इसलिए मैंने 

समेटना शुरू कर दिया है 

और तय कर दिया है कि

अहले सुबह 

तुम्हारी गाड़ी छूटते ही 

अपने बंधे अधबंधे सामान समेट लूंगी 

पर

कोठरी के कोने में 

टुकनू भर रौशनी 

पड़ी है अभी भी।

-वंदना टेटे

काव्य संवेदना:

ग्राम जीवन की यादें आज बहुत से कुछ सीखाकर जाती है। आज प्रत्येक व्यक्ति ने भले ही शहरी जीवन की ओर अपना मार्गस्थ किया है। किंतु ग्रामीण आँचलिकता हमेशा के लिए याद रहती है। ऐसी परिस्थितियों को कवयित्री वंदना टेटे 'इस कोठारी के लिए' कविता में रेखांकित करती है। वे अपनी गाँव की कोठरी के लिए समर्पण की भावना जागृत करती है। पहले जो लगाव कोठारी के प्रति था उसी लगाव को वे काव्य में चित्रित करती है। वे कहना चाहती है कि "मैंने अब तय कर लिया है कि अपनी कोठरी में रहने के लिए वापस जाना है। शहरी दुनिया में जीवन जीते-जीते अब दंग आ गई हूं। अपने कोठारी के साथ कही एहसास एवं रंग भरे हुए आज भी है। लेकिन जब उस कोठरी की देखभाल नहीं होती तो एक ही महीने में उसकी सूरत बदल जाती है। यह सब होने से पहले मैं अपनी कोठरी में वापसी करूंगी। इस कोठारी के निर्माण के लिए मैंने कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना किया है। तब जाकर यह उठ खड़ी हुई। अब मैंने तय कर दिया है कि जल्द से जल्द मैं अपनी कोठरी की देखभाल करने के लिए वापस लौटूंगी।" इस प्रकार से कवयित्री वंदना टेटे अपनी भावाभिव्यक्ति को काव्य में व्यक्त करती है।

संदर्भ-

वंदना टेटे-कोनजोगा-पृ.54-55


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