बाबाराव मड़ावी की सावित्री कविता में ऐतिहासिक नारी सावित्री का गुणगान
Dr. Dilip Girhe
सावित्री
तूने जब यशवंत को
अपनी ही गोद में लेकर
माँ की ममता दी
तब मनुवादियों ने
तुझे पत्थर मारे
तूने उन पत्थरों को
बम की तरह सहा—
तूने यहाँ की व्यवस्था का
विरोध किया और
यशवंत को गोद में लेकर
माँ का कर्तव्य निभाया
सावित्री
तू ज्योतिबा की परछाई बनी
गरीबों की माँ बन गई
तूने रिश्तों को परिभाषा
सती होने वाली को रोका
विद्यालयों की आधार दिया—
सावित्री
तू सच में नहीं रुकी
तेरे ज्योतिबा के
जाने के बाद भी
तू आगे चलती ही गई
प्लेग से भरा हुआ
शरीर लेकर लाशों के
ढेरों से चलते हुए
तूने अपने लोगों की
साँसें पहचानी
मरने वाले जीव
तेरी तरफ देखकर
दम तोड़ते गए
तेरी ममता देखकर
सर झुकाते गए
तेरे शरीर मरने वालों को देखकर
आँखों में आँसू लेकर
लाशों के ढेरों से
चलता गया—
तेरा कार्य
असमाजिकता को तोड़ने वाला
गुलामी को मुक्त
करने वाला है—
सावित्री तू
तूफान की बिजली है
अँधेरों का उजाला है
गरीबों का साहस है
तेरी क्रांति से ही
स्त्रियों के हाथों में कलम और
क्रांति की मशाल आई और
यहाँ का अँधेरा नष्ट हुआ!
मूल कविता बाबाराव मड़ावी मराठी की है। हिंदी अनुवाद-Dr. Dilip Girhe
काव्य संवेदना:
कवि बाबाराव मड़ावी ने “सावित्री” भारतीय समाज सुधार की अग्रदूत सावित्रीबाई फुले को समर्पित की है। कवि ने इस कविता में उन्हें “क्रांति की मशाल” और “अंधेरों का उजाला” कहा है। आज जब समाज फिर से जाति, लिंग और असमानता के सवालों से जूझ रहा है, तब सावित्रीबाई का जीवन और यह कविता हमें शिक्षा और समानता की क्रांतिकारी शक्ति की याद दिलाती है। सावित्रीबाई फुले ने कहा था। “अगर तुम शिक्षित हो जाओगे, तो तुम्हारी दासता खत्म हो जाएगी।” इस कविता में कवि लिखते हैं कि “तेरी क्रांति से ही स्त्रियों के हाथों में कलम और क्रांति की मशाल आई...” यह पंक्तियाँ बताती हैं कि शिक्षा केवल ज्ञान नहीं, बल्कि मुक्ति का भी साधन है।
आज भी जब बेटियों की शिक्षा कई ग्रामीण और पिछड़े समाजों में सीमित है, सावित्रीबाई का यह संदेश अत्यंत प्रासंगिक दिखाई देता है। शिक्षा ही असमानता, गरीबी और अंधविश्वास को मिटाने की सबसे बड़ी ताक़त है।
सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने मिलकर 1848 में भारत का पहला बालिका विद्यालय खोला। उस समय समाज ने उन्हें “पत्थर मारे”, जैसा कि कविता में आता है “तब मनुवादियों ने तुझे पत्थर मारे, तूने उन पत्थरों को बम की तरह सहा।” यह रूपक दर्शाता है कि कैसे उन्होंने हिंसा और तिरस्कार को झेलते हुए भी शिक्षा का दीपक बुझने नहीं दिया। बल्कि ज्योत पर ज्योत लगाती गई। उनका जीवन यह सिखाता है कि सही समाज सुधार कार्य संघर्ष से ही संभव है। आज के संदर्भ में, जब समाज में स्त्रियों को बराबरी और शिक्षा के अधिकार के लिए अभी भी संघर्ष करना पड़ता है, तब सावित्रीबाई की यह जिजीविषा प्रेरणा देती है।
कविता में कवि सावित्रीबाई को संबोधित करते हैं कि “सावित्री तू, तूफान की बिजली है, अँधेरों का उजाला है, गरीबों का साहस है।” ये पंक्तियाँ स्पष्ट करती हैं कि सावित्रीबाई केवल एक शिक्षिका नहीं थीं, बल्कि स्त्री-शक्ति का प्रतीक थीं। उन्होंने स्त्रियों को आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता और अधिकार के लिए जागरूक किया। वर्तमान में जब लैंगिक असमानता, बाल-विवाह और शिक्षा में भेदभाव अब भी मौजूद हैं, यह कविता एक प्रेरणास्रोत बन जाती है। आज भी समाज में “अंधकार” है-वह अंधकार अज्ञान का, पितृसत्ता का, और भेदभाव का। “सावित्री” जैसी कविताएँ हमें याद दिलाती हैं कि सामाजिक परिवर्तन केवल नारों से नहीं, बल्कि शिक्षा, समानता और करुणा से संभव है। सावित्रीबाई फुले का जीवन आज भी एक आंदोलन की तरह जीवित है। उन्होंने कहा था-“लड़कियों को पढ़ाओ, क्योंकि शिक्षित नारी ही समाज को आगे बढ़ा सकती है।
निष्कर्ष रूप में कहा जाता है कि “सावित्री” कविता में कवि ने न केवल एक ऐतिहासिक नारी का गुणगान किया है, बल्कि आधुनिक भारत के लिए एक आदर्श पथ भी बताया है। सावित्रीबाई फुले की तरह हर शिक्षिका, हर माँ और हर स्त्री जब शिक्षा की मशाल उठाएगी-तो “यहाँ का अंधेरा नष्ट होगा।” “सावित्री तू तूफान की बिजली है, तेरी क्रांति से ही यहाँ का अंधेरा नष्ट हुआ।” यह कविता आज भी हमें याद दिलाती है।शिक्षा ही सबसे बड़ी क्रांति है।


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