वंदना टेटे की 'अपना घर' कविता में परिवारिक अनुभव
Dr. Dilip Girhe
अपना घर
बचपन की दहलीज जब
लांघी थी मैंने
मां ने हिदायत दी
छोटे भाई ने तमीज सिखायी
यौवन की दहलीज पर
जब सेमल लाल चटक गया था
मां की माथे की लकीर गहराई
भाई ने भी हंसने पर रोक लगाई
और पिता बन गए चीफ सिक्योरिटी अफसर
यहां प्रतिबंधित हर चीज
मुझे अपने घर में करना था
जो अनदेखा, अनजाना
बचपन से यौवन की दहलीज तक
देखा सुनहला सतरंगा सपना
और इस आशे में कि अपना घर होगा कोई
लांघ आयी पीहर से ससुराल की देहरी
पर आज तक न मिला
वो घर
वो अपना घर।
-वंदना टेटे
काव्य संवेदना:
इस कविता में कवि अपने जीवन के अनुभवों और सपनों को व्यक्त कर रहा है, जो सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भी महत्वपूर्ण हैं। कविता में कवि अपने बचपन से लेकर यौवन तक के सफर को दर्शाता है, जिसमें उसने अपने परिवार और समाज के प्रभाव को महसूस किया है।
परिवार का प्रभाव:
"मां ने हिदायत दी छोटे भाई ने तमीज सिखायी"
इस पंक्ति में कवि अपने परिवार के प्रभाव की बात कर रहा है, जो उसके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार के सदस्यों ने उसे जीवन के मूल्यों और आदर्शों को सिखाया है।
सामाजिक अपेक्षाएं:
"पिता बन गए चीफ सिक्योरिटी अफसर"
इस पंक्ति में कवि अपने पिता की सामाजिक स्थिति की बात कर रहा है, जो समाज में एक महत्वपूर्ण पद पर हैं। इससे कवि को सामाजिक अपेक्षाओं का सामना करना पड़ता है।
सपना एवं आशा:
"जो अनदेखा, अनजाना बचपन से यौवन की दहलीज तक देखा सुनहला सतरंगा सपना"
इस पंक्ति में कवि अपने सपनों और आशाओं की बात कर रहा है, जो उसने बचपन से देखे हैं और जो अभी भी अधूरे हैं। यह सपना और आशा सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे व्यक्ति को आगे बढ़ने और समाज में योगदान करने के लिए प्रेरित करते हैं।
इस कविता में कवि अपने जीवन के अनुभवों और सपनों को व्यक्त कर रहा है, जो सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भी महत्वपूर्ण हैं। कविता में कवि के परिवार और समाज के प्रभाव को दर्शाया गया है, जो उसके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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