डॉ. खन्नाप्रसाद अमीन की कविता में संवेदनहीनता के परिचायक
-Dr. Dilip Girhe
संवेदनहीनता
आधुनिकता और
विकास के पैमाने पर
मुझे सौ प्रतिशत सन्देह है
विस्थापित कर और उजाड़कर संस्कृति को
नहीं बनाया जा सकता
विकसित भारत
हमें बेदखल कर
आधुनिक राष्ट्र की
कल्पना करना भी निरर्थक है
विस्थापन से पुनर्वास का
इन्तजाम सिर्फ कर दिया
कोरे कागज पर
छोड़ दिया हमको भगवान भरोसे
भटक गई हमारी जिन्दगी
कब मिलेगा हमें न्याय ?
सरकार,
व्यापारी और सभ्य समाज
सब बन गए, हमारी ओर से
संवेदनहीनता के परिचायक ।।
-खन्नाप्रसाद अमीन
काव्य संवेदना:
आदिवासी समाज के साथ संवेदनहीनता के परिचायक इतने बढ़ गए हैं कि जिसके कारण उस समाज को अपनी बुनियादी सुविधाएं बराबर न मिलने के कारण न्याय नहीं मिल पा रहा है। उन्हें भगवान के भरोसे छोड़कर कोरे कागज़ पर उनकी योजनाओं को दर्ज किया जा रहा है। ऐसी ज्वलंत समस्याओं पर खन्नाप्रसाद अमीन अपनी कविता 'संवेदनहीनता' में आदिवासियों की भावनाओं, दर्द-पीड़ाओं एवं सरकार की उनके प्रति की उदासीनता का वर्णन करते हैं। वे अपनी कविता के माध्यम से कहना चाहते हैं कि वर्तमान में जिस आधुनिक परिस्थितियों में आदिवासी समाज जीवन जी रहा है। उस परिस्थिति में उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आज सरकार के सामने विकास का मुद्दा है लेकिन वह मुद्दा आदिवासी विस्थापन करके या फिर उनकी घरों को उजाड़कर किया जा रहा। विकसित भारत का सपना किसी समुदाय के सपनों को बेघर करके नहीं किया जा सकता है। आदिवासियों को विस्थापन के नाम पर उन्हें पुनर्वास का सपना दिखाकर उनकी बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है। यह पुनर्वास का सपना तो सिर्फ और सिर्फ कागज़ पर ही रह जा रहा है। ऐसी कई प्रकार के संकटों से आदिवासी समाज चिंतित है। इसी वजह से सभ्य समाज की संवेदनहीनता के विविध रूप दिखाई दे रहे है। इसको कवि खन्नाप्रसाद अमीन ने अपने काव्य में चित्रित किया है।
संदर्भ
डॉ खन्नाप्रसाद अमीन -आदिवासी की मौत (काव्य संग्रह) पृष्ठ. 27
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