वंदना टेटे की कविता में उदासी मर्म का यथार्थ
Dr. Dilip Girhe
आओ खत्म कर लें
क्यों मन प्राण तुम्हारा उदास है?
देखो तो पूरा जंगल
जो बचा है महामहा रहा है
फूलों से लोग भी उत्साहित हैं पर
क्यों तुम्हारा मन- प्राण
उदास है?
फागुन/बसंत आ गया
आओ मेरे साथ
साथ-साथ स्वागत करें
कृतज्ञ हों और नाचे
दुखी और उदास होने से कुछ नहीं होगा।
दुःख को ताकत बना कर
जीने का नया रास्ता खोजो
पुरखों का दिया ज्ञान
दिखाएगा तुम्हें मुझे रास्ता
आशीषित करेंगे हमें
होगी बारिश जोरों की
भर जाएंगे नदी, नाले, और बांध
बुझेगी धरती की प्यास
और जीवन सारा
हरिया जाएगा
बारिश होगी
बीज अंकुरेगा, बढ़ेगा, युवा होगा
फूलेगा, फलेगा, पकेगा
जमीन पर गिरेगा
और बारिश होगी तब फिर अंकुरेगा
यही तो जीवन का मर्म (प्रक्रिया) है
इसलिए मत उदास हो आओ काम को
खत्म कर लें।
मत उदास हो।
-वंदना टेटे
काव्य संवेदना:
इस कविता के माध्यम में कवि अपने जीवन में आई उदासी का मर्म खोजने की प्रयास करती है। उदास व्यक्ति को प्रकृति के बहुत से हलचलों से कुछ सीखना चाहिए। जैसे कि बसंत ऋतु का आते ही प्रकृति के इर्दगिर्द हरियाली-ही-हरियाली आती है। वैसी ही हरियाली मनुष्य के जीवन में भी आ सकती है। और मनुष्य अपने उदासी को खत्म कर सकता है। जंगल का वातावरण देखिए सब फूल खिल रहे हैं। पशु-पक्षियों में उत्साह का माहौल है। जंगल की महक से सभी ओर ऊर्जा का संचार हो रहा है। ऐसे वातावरणीय प्रसंग में मनुष्य क्यों इतना उदास रहना पसंद कर रहा है? ऐसा सवाल आना साधारण सी बात है। मनुष्य जिस प्रकार से दुःखी एवं उदास रहता है। उस प्रकार से उसे अपना जीवन जीने से कोई भी चीज़ हासिल नहीं होने वाली है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति दुःख पाने से ओर भी व्यक्ति कमजोर हो जाता है। इसी दुःख को सुख की ताकत बनाकर उस व्यक्ति को नया मार्ग खोजना आवश्यक है। तभी उसके उदासी पर पाबंदी आ सकती है। कवि आगे कहना चाहती हैं कि हमें अपने बुजुर्गों के मार्ग पर चलना चाहिए। क्योंकि उनके गहरे ज्ञान एवं सोच के कारण ही हमें जीने का एक नया रास्ता मिल सकता है। उनके आशीष सदा ही हमारे साथ बने रहते हैं।
जिस प्रकार से प्राकृतिक संसार में बारिश होती है, नदी-नाले भरकर बहने लगते हैं और जमीन की प्यास बुझाते हैं। उसी प्रकार से मनुष्य का भी जीवन है। उसके जीवन में भी हरियाली, बीज, फल-फूल फल सकते हैं। यही व्यक्ति के जीवन जीने का मुख्य सार है। इन्हीं बातों से हम कह सकते हैं कि मनुष्य को उदासी पर ब्रेक लगाना जरूरी है। कवयित्री प्रस्तुत कविता के माध्यम से यही संदेश देना चाहती है कि मनुष्य ने अपने जीवन में हार मानना नहीं चाहिए। भले ही कितने भी क्यों चढ़ाव-उताव या संकटों का सामना क्यों न करना पड़े। उससे कभी भी उदास नहीं रहना चाहिये। इसी चढ़ाव-उताव को आगे बढ़ने का मार्ग निकालना चाहिए और बसंत ऋतु के माहौल जैसी अपने जीवन की शुरुआत करनी चाहिए। इसी प्रकार से कवयित्री अपनी कविता में संदेश देना चाहती हैं।
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