शनिवार, 27 अप्रैल 2024

जानिए शबर आदिवासी समूह उत्पत्ति की लोककथा -janiye shabar aadiwasi samuh utptti ki lokkatha


  

शबर आदिवासी समूह उत्पत्ति की लोककथा

"सबसे पहले चारों ओर समुद्र ही समुद्र था, कहीं भी मिट्टी नहीं थी। पानी ही पानी था चारों ओर। आकाश में देवी-देवता के साथ एक जोड़ा फेगा पक्षी था। आकाश के देवी-देवता दिघवा पक्षी (जो पक्षियों का राजा कहलाता है) ने फेगा पक्षी को मिट्टी खोजने के लिए भेजा। वह पक्षी खोजते-खोजते आकाश से झूलते सोने के धागे से

बँधे हुए केंचुआ राजा से मिला। "तुम्हारा क्या नाम है?" फेगा पक्षी ने उससे पूछा।

"मेरा नाम केंचुआ राजा है।" केंचुआ राजा ने उत्तर दिया।

"क्या खाते हो?" फेगा पक्षी ने पूछा।

"मैं मिट्टी खाता हूँ।" केंचुआ राजा बोला।

"मिट्टी खाने से क्या फायदा होगा?" फेगा पक्षी ने पुनः सवाल किया।

"मैं मिट्टी खाकर समुद्र को मिट्टी से ढक दूँगा और धरती बनाऊँगा।" केंचुआ राजा ने अपनी मंशा बताई।

उस समय फेगा पक्षी ने सोने के धागे से झूलती मिट्टी लाकर बूढ़े केंचुआ राजा को खिलाई, तो केंचुआ राजा मोटा हो गया। उसी समय बूढ़े केंचुआ राजा ने आकाश में घूमते-घूमते चारों ओर मिट्टी का ही पाखाना कर दिया और समुद्र के एक-चौथाई भाग को ढक दिया। उसके बाद बहुत बड़ा आँधी-तूफान आया। उस तूफान से सब कुछ ऊबड़खाबड़ हो गया, जिसे आकाश के देवी-देवताओं ने समतल बनाया। जहाँ-जहाँ मिट्टी असमान रही, वहाँ जंगल बना और जहाँ समतल थी वहाँ मैदान बना। उसके बाद फिर आँधी-तूफान आया। उस आँधी-तूफान के बाद एक अंडा पैदा हुआ, जो सात दिन बाद फट गया। उसी से सभी जीव-जंतुओं का जन्म हुआ। उस अंडे के छिलके के अंदर के तरल भाग से शवर जाति का और खोड़ा से खड़िया जाति का जन्म हुआ। अंडे के केंद्र के पीले भाग से राजा-रानी का जन्म हुआ। शबर शब्द का अर्थ किशोर होता है। शबर लोग जंगली गुफा या पत्थरों की गुफा के अंदर रहकर जंगली आलू, कंद, फल खाकर गुजर-बसर करते थे। उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे जंगल में बोदी की खेती करना सीखा, जिससे 'जारा-काटा' शबर का नामकरण हुआ।"

निष्कर्ष: 

शबर आदिवासी समूह झारखंड के आदिम जनजाति समूह में आता है। 'शबर' समूह 'खड़िया' समूह की ही एक उपजाति है। भौगोलिक दूरी से इनकी कथाओं में हेर-फेर हो गया है।

प्रस्तुति : रोज केरकेट्टा

इसे भी पढ़े-शबर आदिवासी समूह की महत्वपूर्ण जानकारी 

संदर्भ :

रमणिका गुप्ता (संपादक)-आदिवासी  : सृजन मिथक एवं अन्य लोककथा 


आदिवासी युवा कवयित्री जसिंता केरकेट्टा को मिलेगा 'ओमेगा रिजिलियंस अवार्ड'-aadiwasi yuva kavayitri jasinta kerketta ko milega omega resilience award

 


दिवासी युवा कवयित्री जसिंता केरकेट्टा को मिलेगा 'ओमेगा रिजिलियंस अवार्ड'


प्रतिष्ठित अंतराष्ट्रीय फेलोशिप "ओमेगा रिजिलियंस अवार्ड (फेलोशिप)" के लिए हर साल अफ्रिका, लैटिन अमेरिका और भारत से ऐसे रचनात्मक युवाओं को चुना जाता है। जो अपने नए नज़रिए से दुनिया भर में लोगों का नज़रिया बदलने का काम कर रहे हैं। इसमें कई देशों से कवि होते हैं। साथ ही अपने समुदायों में भी लोगों को वैश्विक संकटों से बचे रहने के रास्ते तलाशने में सहयोग कर सकते हैं। पहले हर देश के बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट, प्रबुद्ध नागरिकों के सहयोग से ही युवाओं के नाम का चयन होता है फिर ऐसे युवाओं से संपर्क और संवाद किया जाता है। भारत से यहाँ पर स्टार्ट अप नाम की संस्था की मदद से युवा चुने जाते हैं। 



जसिंता ने अपनी बातों में कहा कि "भारत में ज्यूरी सदस्यों से साक्षात्कार के दौरान मैंने उन्हें अपनी बात रखते हुए कहा था कि काम करने के लिए आर्थिक सहयोग की ज़रूरत रहती है पर कई बार पैसा हम पर अलग तरह का दबाव लेकर आता है। बेईमान या स्वार्थी हो जाने, जैसे तैसे रिपोर्ट दिखाने, काम दिखाने का दबाव रहने की संभावना भी रहती है। लेकिन ज़मीन पर काम धीरे धीरे होता है। साधारण लोग धीरे धीरे चलते हैं। धैर्य और संवेदनशीलता के साथ किसी काम का आगे जाना ज़रूरी है। बदलाव या विकास को आंकड़ों में देखने से अधिक महसूस किया जाना ज़रूरी है। इस तरह अगर बिना किसी दबाव के धैर्य के साथ चला जाए तो फेलोशिप मददगार हो सकती है। खुशी है कि उन्होंने इस स्पष्टता को सहज स्वीकार कर लिया। इस फेलोशिप से आदिवासी समाज में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को नए तरीके से सशक्त करने में लगे आदिवासी सहयोगियों के साथ जुड़कर काम करने का अवसर मिलेगा। साथ ही भारत सहित अन्य देशों के युवाओं से सीखने का अवसर भी मिलेगा। इस वर्ष का यह फेलोशिप मेरे लिए इन कारणों से भी महत्वपूर्ण है।"